प्रतियोगिता -(4) एकल राउंड
( शब्दों की माला )
विषय – ” समय की परछाइयां ”
समय के साथ चलो या समय के आगे-पीछे
समय हमेशा ही अपनी ओर हमें रहता खींचे
इस धारा में हमें चाहे-अनचाहे बहते रहना है
अपना मोल कितना है समय से कहना है ।।
इसकी परछाई हर काम में दिख जाता
अनुभव बनकर विचारों में छलक कर आता
समय को सोच-समझ कर हमें जीना होगा
इसे दुखांत बनाकर ना रस पीना होगा ।।
समय की परछाइयां मन में घर कर जाती
कभी घुटन कभी सुकून हम पर बरसाती
इस खेल से लोग कहां परे हट पाते
समय व्यतीत होने के बाद यादें दोहराते ।।
समय की परछाई पूरे व्यक्तित्व पर पड़ता है
निखरता वही जो अक़्सर समय से लड़ता है
वक्त पलटने में ना ज़्यादा देर लगाता
अच्छे बुरे हर पल से हमें वाकिफ कराता ।।
समय की परछाइयां हमारे पीछे पड़ जाती
वक्त बेवक्त हमें सीख और दर्पण दिखाती
बचपन जवानी या आ जाए बुढ़ापा
इसकी यादें खट्टी मीठी कड़वी का है सियापा ।।
समय शुद्ध नीर है तो समय पीर भी
देता कभी जीत कभी बन जाता जंजीर भी
हर परिस्थिति में इसकी साख को जो मज़बूत बनाता
वह समय की परछाइयों से कभी नहीं घबराता ।।
कर्म हमेशा वक्त की निगरानी में करना
क्योंकि हमें जीवन में विष नहीं अमृत है भरना
मानते हैं कुछ ना कुछ तो कसक दे ही जाएगी
पर अपनी तरफ से हमें हर संभव कोशिश है करना ।।
सुमन लता ✍️
अल्फाज़ -e-सुकून
सीरीज 1