प्रतियोगिता “स्वतंत्रता स्वर”
विषय “कोई स्वतंत्रता सेनानी”
Genre पत्र
प्रिय बापू,
आपको मेरा कोटि-कोटि नमन,
मुझे नहीं पता कि यह पत्र मैं गर्व से लिख रही हूँ या शर्म से। शायद दोनों भाव ही मेरे मन में इस समय हैं। आप और आपके जैसे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने जिस भारत का सपना देखा था, क्या यह वही भारत है?
आज जब मैं चारों ओर देखती हूँ तो देश के नाम पर सिर्फ बातें ही होती हैं, मगर असल में कुछ नहीं हो रहा। आपके बलिदान को अक्सर बस एक छुट्टी या एक तस्वीर तक सीमित कर दिया जाता है, जबकि हम आज भी आपकी शिक्षाओं पर चलने में पूरी तरह असफल हैं।
सोशल मीडिया, जो एक वायरस की तरह है, आज हर किसी के पास है। वहाँ पर लोग किसी के भी खिलाफ जहर उगलकर चले जाते हैं।
कुछ लोगों के लिए नफरत और गुस्सा इस हद तक बढ़ गया है कि वो इंसानियत तक को भूल गए हैं।
इस आधुनिक AI के दौर में, आपकी और हमारे कई महान स्वतंत्रता सेनानियों की तस्वीरों का गलत इस्तेमाल हो रहा है। उन पर तरह-तरह के मजाक बनाए जाते हैं, भद्दे कमेंट्स किए जाते हैं, पर जनता बस तमाशाबीन बनकर देखती रहती है।
कोई भी उनके अपमान के खिलाफ आवाज नहीं उठाता, बल्कि लाइक् और कॉमेंट्स की संख्या देखकर विश्वास नहीं होता कि यह हमारे देशवासी है।
आपने देश को एकजुट करके आजादी दिलाई थी, लेकिन आज वही एकता कहीं खो सी गई है।
क्या 15 अगस्त को एकजुट होकर झंडा लहराना यही देशभक्ति है?
“एकता से मिली थी आजादी हमे,
पर आज भी कई दिलों में नफरत का घर है।”
हाँ, हमारा देश तरक्की कर रहा है। आजाद होने के बाद हम बहुत आगे निकल आए हैं। हमारे देशवासियों ने हर मुकाम पर अपने झंडे गाड़े हैं, चाहे वो धरती पर हो या चाँद पर।
लेकिन, इस तरक्की की चमक में कुछ अँधेरा है। हमारे देश के कुछ इलाके आज वक्त से आगे चल रहे हैं और कुछ इलाके आज भी वक्त से पीछे चल रहे है। अमीरी और गरीबी की खाई आज भी बहुत गहरी है।
बापू, आपने सोचा था कि धर्म, जाति, और भाषा की दीवारों को तोड़कर एक मजबूत भारत बनेगा। लेकिन अफसोस! आज भी अधिकतर लोग इसी के नाम पर भेदभाव करते हैं।
“धर्म, जाति, भाषा के नाम पर बँटा है भारतीयों का दिल, ये कैसा सवाल है।
अधिकतर जनसंख्या आज भी गरीब है, ये कैसा हाल है!”
मुझे लगता है कि हम नई पीढ़ी के लोग, जो अपने देश की तरक्की के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, असल में हम बहुत कमजोर हैं।
लड़ता है वह देश प्रेमी युवा सरहद पर,
तो कई नशे में डूबे खुद के कर्मों की जंग हार जाते हैं।
लोग अक्सर रोजगार के लिए लड़ते हैं,
एक ही दौड़ में दौड़ते हैं, उन्हें चाहिए खुद की कामयाबी बस,
बहुत खुदगर्ज हो गय है कई लोग जो देश के हालातो से मुंह मोड़ते हैं।
परिवार की जिम्मेदारी पहले, ये जरूरी है,
फिर समाज आता है।
समाज से बनता है देश हमारा, देश में सुधार जब ही आता है जब समाज में सुधार आता है।
हम अपने देश की हालातो को बेहतर करने में कई जगहों पर असफल है।
बापू, आप जहाँ भी हैं, हमें माफ कर दीजिए। हम आज तक आपके सपनों के भारत को साकार नहीं कर पाए। लेकिन कोशिश हमारी जारी है, आप और उन अनगिनत स्वतंत्रता सेनानीयो जिनका शायद इतिहास में नाम तक न आ पाया, उन सभी की इच्छा अनुसार एक बेहतर भारत बनाना हमारे जिम्मेदारी है।
12-08-2025. देश की जागरूक नागरिक
नाम: सादिया
स्थान : तेलंगाना
12-08-2025