हिंदुस्तान का दिल – दिल्ली

“हिंदुस्तान का दिल – दिल्ली”

दिल है ये हिंदुस्तान का, नाम है इसका दिल्ली,
हर कोना इसकी रूह में समाई कोई गहरी यादों की सिल्ली।

राजाओं की रजधानी थी, बादशाहों की ये शान,
जहाँ क़ुतुब की मीनारें गातीं वीरों की पहचान।

कभी धूप में लाल किला, कभी छांव में जामा मस्जिद,
कभी अक्षरधाम की लौ में बसी आत्मा की सच्ची उम्मीद।

यहाँ रथ चला अशोक का, और मेहरौली की साँझ सुनी,
यहाँ रकाबगंज में गुरुओं की दी हुई कुर्बानी बनी।

अकबर से लेकर औरंगज़ेब तक, हर किसी की छाप है,
मुग़लों की बुनियाद में भी एक हिंदुत्व किताब है।

लुटियंस की दिल्ली बनी जब, फिर बसा संसद का द्वार,
नेहरू जी की आवाज़ों में गूंजा था आज़ादी का जयकार।

राजघाट की चुप्पी में है बापू जी की आवाज़ कहीं,
इंडिया गेट की छाया में आज भी बहादुरी जगमगा रहीं।

दिल्ली ने देखे हैं बम भी, देखे हैं मोम के दीये,
देखी है यहाँ भीड़ में भी वो माँ जो बेटे को जिये।

यहाँ कनॉट प्लेस के धागे में है हर धर्म की एक दुकान,
जहाँ चाँदनी चौक से बहती है सदियों पुरानी जान।

यहाँ की बसों में रोज़ सफर करते सपने हज़ार,
मेट्रो की रफ्तार में हैं जवानों के इरादे अपार।

दिल्ली सिर्फ शहर नहीं, ये तो एहसासों की रचना है,
जहाँ चाय की प्याली में भी इतिहास और नवीनता की चर्चा है।

AIIMS की गलियों में दुआएं मिलती हैं हर रोज,
और दिल्ली यूनिवर्सिटी की गलियों में उड़ती हैं अविष्कार की सोच।

यहाँ जुमा की नमाज़ भी है और गीता का पाठ भी,
यहाँ कंधे से कंधा मिलाकर चलता है हर जात भी।

दिल्ली ने आँसू भी देखे हैं, और बग़ावतें भी झेली हैं,
पर फिर भी इसने सीने में उम्मीद की किरणे पाली हैं।

यहाँ लाल रंग सिर्फ किले का नहीं, शहीदों का लहू भी है,
यहाँ हर चौराहे की एक कहानी है, हर मोड़ एक एक किताब भी है।

बसेरा है यहाँ का चाहे निवासी हो या फिर कोई प्रवासी,
दिल्ली ने सबको गले लगाया — हो अमीर या हो उम्मीदों का राजसी।

आज की दिल्ली स्मार्ट है,टेक्नोलॉजी की पहचान है,
पर दिल वही है जो हर दुश्मनों की भी जान है।

मॉल्स के नीचे छुपी हैं गलियाँ पुरानी हवेली की,
लेखकों के लेखनी में भी है बात और कुछ शब्द कवि के शैली की।

दिल्ली तुम भी थकी नहीं, चाहे कितनी आंधियाँ चलीं,
तुमने हर बार दिखाया कि क्यों हो हिंदुस्तान का दिल – दिल्ली।

दिल्ली तुम सिर्फ राजधानी नहीं, तुम तो इतिहास हो,
तुम्हारी हर सांस में बसी, हमारी भारत भूमी की आस हो।

(फाइनल राउंड)

— ऋषभ तिवारी (लब्ज़ के दो शब्द)

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