हुस्न

हुस्न की तारीफ़ में, न जाने कितनी ग़ज़लों को नाम मिला…
लब-ओ-रुख़सार से, नज़्म-ए-जमाल का पैग़ाम मिला…

पर्दे में रख्खा उन्हें… मगर रज़ कहाँ रज़ रहा…
हर कोचे-कोचे में… उनके जल्वा-ए-गुलफ़ाम मिला…

वो दिखती हैं क़यामत… या क़यामत ढलती है उनसे…
दीदार-ए-नाज़नीं से… आफ़ताब-ए-गुलिस्ताँ मिला…

सौदा-ए-दिल में… आशिक़ नियाज़ बे-ख़ुद-ओ-मस्त हुआ…
साक़ी-ए-निगाह से… हर दम नया ख़ुमार मिला…

लोग कहते हैं… उनके जल्वे ने होश लूट लिया…
नज़र के तीर से… हर दिल को दर्द-ए-अंजाम मिला…

शिकायत करूँ… या शुक्र अदा करूँ ख़ुदा से…
क्यूँ हुस्न-ए-लाज़वाब… इतना आलीशान मिला…

Updated: September 26, 2025 — 3:04 pm

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