अजनबी अपने ही घर मे
Ravikant Dushe
अजनबी अपने ही घर मे हो गए
सारे इल्ज़ाम मेरे ही सर हो गए
न रहा कुछ भी अब मेरा यहाँ
जबसे वो दिल के मालिक हो गए
ये दीवारें जो कभी लगती थी अपनी
सब इशारे अब पराये हो गए
ये इश्क कर देता हैं बेगाना सबसे
दुश्मन अब सारे हमारे हो गए
न चैन सुबह न सुकूं अब रात को
लगता है अब हम बंजारे हो गए
देखकर बदलें हुए रँग हमारे
जो थे अपने सब किनारे हो गए
वो मिला नहीं साथ सारे छूट गए
भरी दुनियाँ में हम बेसहारे हो गए
किसी को अपना बनाने मे क्या क्या न सहना पड़ा
उजली राहो में अँधियारे हो गए
जानते थे इश्क आसाँ नहीं होता
फिर भी न जाने हम क्यूँ परवाने हो गए
एक मे ही इश्क मे हूँ ऐसा नहीं
कई लोग मोहब्बत मे दीवाने हो गए
कितने इम्तिहान से दो चार होना पड़ा
मरने के लिए कितने बहाने हो गए
लौटकर वापस जाना भी मुश्किल है
सारे जमाने के लिए अब रवि बेगाने हो गए