अजनबी अपने ही घर में

क्यों हूं अजनबी अपने ही घर में, क्यों किसी से मिलता नहीं l
क्यों एकांत वास अच्छा लगता, क्यों किसी के पास बैठता नहीं l
दिल में ऐसा क्या बैठा है, जो भुलाए से भूलता नहीं l
क्यों दिल ने चोट खाई, मन कहीं लगता नहीं l
छोड़ा उसने एक पल में, प्यार तुम्हारा समझा नहीं l
जो अपना न हो सका तो, उसके लिए रोना नहीं l
उसका जीवन जीवन है, मेरा जीवन खिलौना नहीं l
जो भी आया खेल लेगा, क्या जीवन का मोल नहीं l
तोड़ दे हम बंदिशे, पागलपन ऐसे प्यार में करना नहीं l
जीवन रहा तो, कई मिलेंगे, सच्चा प्यार हो धोखा नहीं l
मैं भी अपना जीवन, सुखमय जीऊं खुशियां ढूंढू और कहीं l
@ प्रमोद पटले, रायपुर (छत्तीसगढ़) बोलती कलम

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