मैं समय से शिकवा नहीं करता,
वह तो चक्र है, घूमता अनवरत,
पल-पल बदलता रंगों का मेला,
फिर भी मैं उससे मन जुदा नहीं करता।
सूरज उगता, तारे छिप जाते,
पंछी चहकते, सपने जागते,
हर क्षण में बस जीवन की धुन,
मैं उस धुन से राग नहीं छोड़ता।
वक्त की लहरें किनारे छू जाएँ,
कभी ठहरें, कभी दूर ले जाएँ,
जो गया, वह बस याद बनकर रहे,
मैं उस याद से मुँह नहीं मोड़ता।
आज का पल है, इसे जी लूँ मैं,
कल की चिंता में क्यों डूब जाऊँ मैं,
समय का हर उपहार है अनमोल,
मैं उस उपहार को ठुकराया नहीं करता।
कभी सुख, कभी दुख का आलम आए,
वक्त हर घाव को धीरे धीरे भरता जाए,
हर कदम पर नया सबक मिले,
मैं उस सबक से हमेशा कुछ न कुछ सीखता।
समय है नदिया, मैं कश्ती सा हूँ,
उसके साथ बहता, मस्ती सा हूँ,
जीवन का हर रंग स्वीकार करूँ,
हाँ क्योंकि मैं समय से कभी शिकवा नहीं करता।
लेखक – मुकुल तिवारी “अल्हड़”
राउंड – 1
प्रतियोगिता – बोलती कलम
विषय – “मैं समय से शिकवा नहीं करता”