मैं समय से शिकवा नहीं करता
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दो जून की रोटी कमाने चला मैं
वतन को अपने तज चला मैं
नहीं कोई साथी नहीं कोई घर
मैं राहगीर मैं मजदूर मैं पराया मगर,
फिर भी..!!
मैं समय से शिकवा नहीं करता …..!!
मैं बाप, पिता, बेटा, भाई,
सारा जीवन देकर सबके
होंठों पर खुशियाँ लायी मगर अपने
लिए कोई सुख की इच्छा न कि कभी
सभी ने मुझे बात सुनायी
फिर भी…!!
मैं समय से शिकवा नहीं करता ……..
ईश्वर ने मुझमें लाख कमियां की है,
मेरे नाम के साथ देव्यांग की उपाधि
दर्ज की है सभी मुझे देखते दिन हीन
लाचार की दृष्टि से पर मैंने न हिम्मत
कभी हारी है दुनिया चाहें जो
समझे मुझे फिर भी…!!
मैं समय से शिकवा नहीं करता …!!!
ईश्वर के प्रति आभार प्रकट किया,
जीवन को उसके हाथों सोंप दिया,
जब सब कुछ उसका दिया तो दिल ने,
क्यूँ मलाल किया हम उसके वो,
हमारा तो फिर क्यूँ कोई गिला,
शिकवा, इसलिए मैं कभी…..!!
मैं समय से शिकवा नहीं करता …..!!!
रुचिका जैन
राउन्ड वन.
प्रतियोगिता-बोलती कलम
अल्फाज़ ए सुकून