प्रतियोगिता : बोलती क़लम
विषय : मैं समय से शिकवा नही करता
अमूमन में दिल की बातें नही करता,
युहि हर किसी पे यकीन नहीं करता…
तुम्हें हिज्र समझ आता है क्या,बोलो,
बसर मैं शरीरों से तालुक नही करता…
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वक़्त कैसा भी हो,तौहीन नहीं करता,
कभी मैं समय से शिकवा नही करता…
किरदार समझा,युहि बात नही करता,
हालत ए हाल को झुठला नहीं सकता…
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दिल ए रंज किसी से रख नही सकता,
सब अपने है,मेरा-तेरा कर नहीं सकता…
सफऱ ए हायत युहि काट नहीं सकता,
रहबर रहूँगा मैं उसे छोड़ नहीं सकता…
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मेरी फितरत है, मैं बदल नहीं सकता,
लोग बुरे हो,पर मैं बुरा हो नही सकता…
बड़े इत्मीनान से पढ़ा है एक चेहरे को,
चाहकर भी उसे मैं ग़म दे नही सकता….
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वक़्त-वक़्त की बात है,कह नहीं सकता,
किस्मत के भरोसे यूँही रह नहीं सकता…
हौसले बुलंद कर लड़ते रहना जरूरी है,
क्योंकि हार कर कोई भी,जी नही सकता…
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कबीर जिंदगी तो वक़्त की गुलाम रहेगी,
कभी मोहताज, तो कभी आबाद रहेगी…
तुझे बसर चलना है,जिंदगी चलती रहेगी,
दरमियाँ तेरे फिर खुशियाँ-खुशियाँ रहेंगी…
~kabir pankaj