मैं समय से शिकवा नहीं करती

विषय – मैं समय से शिकवा नहीं करती….

न मिला हो कहीं ठिकाना तो क्या ,
मैं ठोकरों से नहीं डरती,
मैं बदलना जानती हूँ हालात अपने हिसाब से ,
तभी मैं समय से शिकवा नहीं करती…..।

कौन आया था और क्या किया किसने ,
खुशियां दी या फिर ग़म दिया उसने ,
मैं बैठकर अकेले ये मलाल नहीं करती,
हां, मैं समय से शिकवा नहीं करती….।

यादें रह गईं हैं कितनी ही देखो ज़रा,
आने वाले बदलावों में दिल है उलझा हुआ ,
अब मुझे इन सबसे घबराहट नहीं होती,
बस मैं समय से शिकवा नहीं करती…।

ये उम्मीदें ही तो हैं जिनसे इंसान जिंदा है,
बिना बन्धन के जैसे आज़ाद परिंदा है,
ये कुछ कर जाने की ख्वाहिश, नया सा जोश है भरती,
यूं ही, मैं समय से शिकवा नहीं करती….।।

अगर बढ़ना है आगे तो पीछे देखना छोड़ो पहले ,
कुछ बंदिशें जो तुम्हारे कदम हैं रोकती,
अब झिझकना नहीं है जमाने के बारे में सोचकर,
इसीलिए मैं समय से शिकवा नहीं करती…।

सम्भल जाएगा सब बस तू कोशिश मत छोड़ना,
राहें कठिन देखकर वापस मत लौटना,
ऐसे ही तो ज़िंदगी की खूबसूरती है बढ़ती,
तभी मैं समय से शिकवा नहीं करती…।।

काजल सिंह ज़िंदगी ✍️
राउंड वन
प्रतियोगिता – बोलती कलम
अल्फ़ाज़ ए सुकून

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