देखो ना माँ! मैं तुम सी हो गई हूँ,
रहती थी जो हर वक़्त अल्हड़ सी,
अब तुम्हारी तरह गंभीर हो गई हूँ,
देखो ना माँ, मै भी तुम सी हो गई हूँ,।
छोड़ दिया है बच्चो की तरह ज़िद करना,
रात भर जागकर, सुबह देर से उठना,
नींद भूल अपनी , जागती आंखों से सो गई हूं,
देखो ना माँ, अब मैं भी तुम सी हो गई हूँ,।
बेटी से माँ का रूप बदलकर आई हूँ,
देखकर लगता है मैं तुम्हारी ही परछाई हूँ,
मुस्कुरा कर आँखों से, दिल को भिगो गई हूँ,
देखो ना माँ, मैं भी अब तुमसी हो गई हूँ,।
देखकर के ज़िम्मेदारी, अब मै भागती नहीं हूँ,
सामने पा मुश्किलों को, अब मैं काँपती नहीं हूँ,
नाउम्मीदी में उम्मीद के, कुछ ख्वाब बो गई हूं,
देखो ना माँ, मैं भी अब तुमसी हो गई हूँ,।
वो नन्ही सी गुड़िया, अब अंधेरों से नहीं डरती,
विपरीत होकर भी, मै समय से शिकवा नहीं करती,
रखकर ख्यालों में तुझे , तेरे आंचल में सो गई हुं ,
देखो ना मां! मै भी अब तुमसी हो गई हुं,।
नहीं चुभती है अब पांवों में, बेड़ियां रिवाज़ो की ,
कटे हुए पंखों में , अब जान नहीं परवाजों की,
दिल में अपने ग़म के , कितने सब्र छिपो गई हूं ,
देखो ना मां ! मै भी अब तुमसी हो गई हुं ,।।
पूनम आत्रेय
राउंड – 1
बोलती कलम
अल्फ़ाज़-ए-सुकून
-पूनम आत्रेय