प्रतियोगिता- बोलती कलम
मैं समय से शिकवा नहीं करती
रात के अंधेरों से कहाँ है डरती
बात – बात पर कहाँ है लड़ती…….
समय का वह पहिया, जो जीने की राह पर चलती, तर्जूबा मिला है जिंदगी से
जो बड़ते कदम को ना रोक पाती…..
मुश्किलें चाहें लाख आती, जिंदगी कहाँ आसान हो पाती, सूर्य में भी ज्वाला है,
तभी तो दुनिया में रोशनी हो पाती…..
डोरी सभी मालिक के पास, हमारे पास कुछ हाथ नहीं, एक विवेक दिया उस भग्वन ने तभी सही व गलत का फर्क समझ पाती…
रास्ते अगर कठिन संघर्ष भी जारी है,
बागों में फूलों की सुगंध है पर उनके साथ भी काँटे है……..
उनसे सीखा जीना इसलिए जिंदगी मुस्कुराती , खुशी हो या गमी फूल दोनों में मुस्कुरा कर वहाँ पहुंच पाते………
समय का पहिया घूमता रहता है, मंजिल किसी को मिल भी जाए पर वह कहाँ थमता है, समय का चक्र बस जिंदगी को ले जाता है……
समय से शिकवा करके मलविंदर हासिल कुछ होगा नहीं अपने कर्म पर जोर लगाओ फिर बूरा कोई साबित कर सकता नहीं….
स्वरचित रचना
मलविंदर कौर
एमएमएमएमएम मलविंदर✍️
राउंड वन