कलम की धार तलवार से तेज़

प्रतियोगिता: “बोलती कलम”
टॉपिक: “कलम की धार तलवार से तेज़”

“कलम की धार, तलवार से तेज़”,
इसकी नोक से निकले जो अल्फ़ाज़,
बदल दे ये दुनिया, जगा दे आवाज़।

बीती सदियों का क्या होता निशान,
अगर न होती ये अक्षरों की ज़ुबान।

कलम न लिखती गर इतिहास,
तो गुम हो जाता हर एक राज़।

तलवार की चमक है पल भर का उजाला,
कलम का प्रकाश युगों तक रहे निराला।

बाज़ू का दम तो मिट्टी में मिल जाएगा,
पर कलम का हर एक अक्षर इतिहास बन जाएगा।

हथियारों से जीती जा सकती है ज़मीन,
कलम से तो दिलों पर होता है राज।
भूल जाते हैं बीती हुई दास्तान हर कोई,
इसके हर शब्द ऐसी दास्तान को जिंदा करते हैं आज।

मशीनों की गर्जना मचाती है बस शोर,
कलम की आवाज़ जगाती है अंतरमन का ज़ोर।

बिना हड्डी की जुबान हर शब्द में कितना शोर है,
खून खराबा मचाते हथियार इनमें कितना जोर है,
हिंसा फैलती बीमारी की तरह,
कलम से लिखा वो अल्फाज जो शांति का पैगाम दे,
वह इस बीमारी का तोड़ है।

साइंस टेक्नोलॉजी ज्ञान की हर एक खोज सीमित रह जाती मन में।
अगर स्याही ना भरी जाती कलम में।

यूं तो कलम से तबाही और खुशहाली दोनों आ सकती है,
मगर यह हम पर है कि हम क्या ला सकते हैं।

जंग हो विचारों की तो यही है सिपाही,
जो काग़ज़ पे लिख दे सच की गवाही।

तलवार या बंदूक़ का जो है वार,
क्या पाएगा टक्कर जब उठे अच्छे विचार?

“कलम की धार, तलवार से तेज़” है
जो बदलदे ये दुनियां, लिखदे इतिहास।

©Sadia
राउंड 2,

Updated: May 7, 2025 — 8:04 am

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