मेरी सिंदूर का बदला तो लिया जाएगा,
उसे उसके घर में ही मारा जाएगा।
जिसने छीन लिया मेरा सुहाग मुस्कुराकर,
अब चैन से वो भी न जी पाएगा।
वो दिन जब तिरंगे में लिपटी लौटी थी मेरी आस,
साथ थे आँसू, चुप्पी, और दिल पर गहरा घाव।
पर मैंने वादा किया था खुद से उसी रात,
कि उसकी कुर्बानी न होगी यूँ ही बेमायने बात।
तुमने सोचा था हम टूट जाएँगे, डर जाएँगे,
पर तुम नहीं जानते, हम शेर की माँएँ हैं।
जो सिंदूर गया है, वो सिर्फ रंग नहीं था,
वो एक कसम थी — अब हर कतरा तुम्हारे खिलाफ़ जंग था।
आज “ऑपरेशन सिंदूर” की गरजती है तोप,
हर गोली मेरे शहीद की चीख़ों का है जवाब।
हर चट्टान पार कर पहुँची सेना वहाँ,
जहाँ छुपे हैं वो कायर, जिनकी हैसियत है ज़हर-सा जहाँ।
आज आसमाँ भी गूंजा है जय हिंद के नारे से,
धरती भी कांपी है दुश्मन की हारे से।
तूने जो लिया हमसे, अब तुझसे सब छीना जाएगा,
मेरी सिंदूर का बदला — अब आख़िरी साँस तक लिया जाएगा।
मेरे आँसू अब हथियार बन चुके हैं,
मेरे बेटे अब रण में व्रत ले चुके हैं।
अब शहीद की विधवा नहीं,
अब मैं बन चुकी हूँ — वंदे मातरम् की प्रतिज्ञा।
जय हिंद।