नेता बदलते हैं नीयत नहीं

प्रतियोगिता – तंज की ताकत
विषय -नेता बदलते हैं, नीयत नहीं

देश बदल रहा है अपना और बदला रंग चुनावों का ,
किंतु रंग आज भी वही है, झूठे सच्चे दावों का ,

कुर्सी की वहीं भूख पुरानी, बदला नेता का बाना है
बदल गई टोपी और वर्दी, सियासी रंग पुराना है,

बड़े बड़े भाषण देकर , सपनो का जाल फैलाते हैं,
पतंग फेंक जुमलेबाजी की , जनता को उलझाते हैं,

जनता के सम्मुख आते हैं , एक मीठी मुस्कान लिए,
हर 5 वर्ष में आते हैं, झूठे वादों का सामान लिए ,

कभी पहनते हैं ख़ादी, कभी भगवा, कभी हरा, नीला ,
झूठे वादों के बोल्ट कसे पर नीयत पेंच बढ़ा ढीला ,

विकास के वादे चलते रहे , बस कागज़ी कार्यवाही में,
जनता लड़ती हालातों से , ये दुबके रहे रज़ाई में,

विकास की झूठी सड़कों पर , जुमलों की पूरी दौड़ लगी ,
कुर्सी पाते ही लुप्त हुए और जनता बस रह गई ठगी ,

देश की इनको फ़िक्र नहीं , और नोटो से गुपचुप यारी ,
जनता पूछे ” सुधरोगे कब ? नेता बोले ” अगली बारी !

ये करते सैर विदेशों की और जनता भूखी रहती हैं,
इन नेताजी के झोले में , नोटो की गंगा बहती है,

धर्म-जाति की राजनीति को, मुद्दों की ओट बनाते हैं,
झूठी सच्ची अफवाहों से , ये जनता को लड़वाते हैं,

सीधे से चेहरे पर चिपकी, चतुराई की गहरी चाल ,
हाथ जोड़ते , सजदा करते , दिल में रखते हैं खूब हवाल,

फरियादें सुनते हैं कम, और फोटों खिंचवाते ज्यादा,
है अखबारों की सुर्खी में , इनका जीवन सीधा सादा ,

जनता रहती गुमराह हमेशा , उनकी मीठी बातों से,
माना कि अनभिज्ञ नहीं है , इनकी झूठी घातों से,

हर पांच साल में उम्मीदों की तस्वीर बदल जातीं है,
पर नीयत वही पुरानी , बस उसकी तासीर बदल जाती है,

फिर भी जनता भूल जाती है, वो इनका इतिहास पुराना ,
उठा पुराने जुमलों का तीर , फिर साधा है जनता पे निशाना ,

तमाशा चलता रहेगा यही , लोकतंत्र की झूठी बातों का ,
पर नहीं बदलेगा धर्म इनका , जनता पर ठहरी घातों का।।

पूनम आत्रेय
तृतीय चरण

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