अपने खूबसूरत मुल्क में दंगे देखना गवारा न होता,
अगर देश को इन भ्रष्टाचारियों का सहारा न होता।
मियां तुम्हारी ही तो देन है ये नापाख पड़ोसी मुल्क,
वरना कभी ये *पाकिस्तान* दुश्मन हमारा न होता।
सोचता हूं ग़र रहबरों की नीयत तभी से सुधर जाती,
तो संपूर्ण विश्व में देश की इज्ज़त का ख़सारा न होता।
नेताओं की फितरत बन गई है विपक्ष को गलियाना,
पर यार बोफोर्स न होते तो कारगिल हमारा न होता।
तुम जैसे भ्रष्टाचारियों पर तंज कसने से रुक जाता मैं,
अग़र तुम सबको नेस्तनाबूत करने का इरादा न होता।
कलम से तुम्हे देशद्रोही करार देने का मन तो था मेरा,
ग़र हमारे देश की गद्दियों पर भी राज तुम्हारा न होता।
दिखाऊं तुम्हे पानी की किल्लत से जूझती हुई बस्ती,
ये प्यासे मरते ग़र खुद की मेहनत का सहारा न होता।
एम्स के चक्कर काटते हुए मर जाता वो ग़रीब अगर,
हरिया ने कर्ज़ लेकर बेटे को डाक्टरी पढ़ाया न होता।
झोलाछाप सही वो भगवान था बस्ती वालों के लिए,
ग़र आपके बुलडोजर ने उसकी दुकां गिराया न होता।
अपने दादा जी देश से निकालने पर तुल चुके थे *राव*,
भगा दिए जाते बाहर अगर आधार बनवाया न होता।
हाथों में कटोरा विपक्ष के जमाने में भी आ गया था,
अगर मनमोहन 1991 में निजीकरण लाया न होता।
क्या कहूं किसको सब तो कुल की कुल्हाड़ी ही बैठे हैं,
ये देश बेच डालते गर देश ने संविधान बनाया न होता।
✍️मयंक राव (फतेहपुर, उत्तर प्रदेश)