अब यह चिड़ियां कहाँ रहेगी

*अब यह चिड़ियां कहाँ रहेगी*

न पेड़ बचा, न कोई बचा एक भी वन,
लोग लगा रहे हैं घर में कृत्रिम उपवन।

दिल नहीं शांत, और दिमाग चाहे पैसा,
घोंसले उजाड़, पिंजरे में दिया जीवन।

कहाँ गई वो मैना और चहचहाती गौरैया,
जिसे सुनकर तो हल्का होता था मन।

देख ये दुर्दशा, जीव-जंतु हैं बहुत बिलखते,
सोचते होंगे ,क्या इतना ज़रूरी है ये धन?

बचाने को जंगल अब तो सरकार है आगे,
लगता है, होगा कभी तो हरियाली का रण।

पिंजरे में कैद तोता, और तो ये नई बजीज़,
चिड़ियों को रोक दिया, पर साँप उठाए फन।

शाह है चिंता में -आगे की दुनिया कैसी हो,
कैसे बचाएँ पेड़ को और बचाएँ कण-कण?

*_प्रशांत कुमार शाह*
प्रथम चरण
अल्फ़ाज़ ए सुकून

Updated: August 4, 2025 — 2:55 pm

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