अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी
उस टूटी डाल का अब आसरा रहा कहाँ कोई,
पंख तो है मगर उड़ने का रास्ता दिखाता कोई।
नीड़ जो था कभी सपनों का, अब खंडहर हो गया,
जहाँ जीवन गाता था गीत, वहाँ सन्नाटा खो गया।
वो शाखें भी अब पराई सी लगती हैं उसे,
हर पेड़, हर बगिया अजनबी सी लगती है उसे।
कभी जिस आकाश को अपना समझती थी,
अब उसी गगन की ठंडी चुप्पी से डरती है।
धूप भी अब चुभती है जैसे तानों की तरह,
बारिशें भी नहीं लातीं कोई नई ख़बर भर।
नदियों ने मोड़ लिए रुख किसी और किनारे,
हवाओं ने भी ओढ़ लिए नए इरादों के सहारे।
एक चिड़िया, जो कभी संसार की सरगम थी,
अब बस खामोशी के सुरों में कहीं गुम सी है।
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी यही सोचती है,
क्या फिर कभी कोई डाल भी उसे बुलाएगी?
© गार्गी गुप्ता