कविता प्रतियोगिता: काव्य के आदर्श
शीर्षक : “अब यह चिड़िया कहां रहेगी ”
जीवन के नव प्रभात में आती, सांझ भए तो ये उड़ जाती
अपनी चूं – चूं की ध्वनि से ,सवेरे सभी को ये जगाती
इस उन्मुक्त गगन में उड़ती, चहचहाती नटखट सी चिड़िया
रानी, मांगे केवल मुक्त स्थान और अल्प ही दाना- पानी
मगर चिंतन का विषय ये है,अब ये हमें कहां मिलेगी
जाने किधर नीड़ है इसका, अब ये चिड़िया कहां रहेगी।
फर – फर कर वो उड़ जाए, न जाने कितने रूप दिखाए
छूकर देखो तो हाथ न आए ,सबसे स्वछंद बन वो चली जाए, घरों की मुंडेर है खाली ,जबसे करने लगे है सब रखवाली, सूनी दीवारें कहने लगेगी , अब ये चिड़िया कहां रहेगी , पिंजरबद करने पर इनको कैसे ये व्यथा अपनी कहेगी , छीनेंगे घर भी इनका अगर तुम तो
ये बेचारी कैसे सहेगी ,होगा गर खिलवाड़ प्रकृति से
जैव विविधता तब हमारी संरक्षित होने से वंचित रहेगी
बोलेगी अंत में कलम ये मेरी ,अब ये चिड़िया कहां रहेगी ।
स्वाति सोनी ✍️
प्रथम चरण