🌸 अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी 🌸
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी,
जिसके सपनों की डोर कट गई।
नीड़ जला, शाखें सूनी हैं,
हर दिशा की तान लुट गई।
जो नभ में नाचती फिरती थी,
वो ज़मीन से भी दूर हो गई।
फूलों से जिसकी बातें थीं,
अब पंखों की थकन बोल गई।
वो बोली भी अब भीगी-भीगी,
नयनों में कोई चुप्पी छाई।
जिसने संवेदना बोई थी,
उसकी साँसें भी अब थम आईं।
अब ये चिड़िया कहाँ बसेगी,
जब मनुष्यता भी मौन हो गई।
स्वाति के द्वारा
“खामोशी में गूंजती वो सदा हूं मैं,,
टूटे पंखों में भी एक दुआ हूं मैं