विषय:- “वो तोड़ती पत्थर”
जब बात बच्चों की *परवरिश* पर आ जाती है,
तो *अकेली माँ* हर परिस्थिति में ढाल बन जाती है,
ना कोई धूप-छांव से उसका वास्ता,
ना कोई भूख-प्यास के लिए खुद की चिंता।।
छोड़ दिया उस पति ने अपने पत्नी को “*अस्पताल में अकेला*”, क्यों?
क्योंकि! जब उसको पता लगा उनकी पत्नी ने *”दो जुड़वां बेटियों”* को जन्म दिया है,
ऐसे हालात पैदा हुए उस *”अकेली माँ”* के सामने,
की उसके पास *थोड़े इंतजार* करने का भी समय नहीं लिया।।
क्योंकि? भुख से तड़पती बच्चियों का दुःख एक माँ कैसे सहती,
मां ने एक-दिन खुद को अपने बच्चों की ढाल बनाने की ठान ली,
“*अकेली माँ*” अब जगह-जगह काम ढ़ढूने जाती थी,
जहां पर जगह मिलती वही पर अपनों बच्चों के साथ विश्राम कर लेती थी।।
कुछ दिन बाद उसको एक बड़ा *पढ़ा-लिखा* व्यक्ति मिला,
उसने उसको और बच्चों की हालत देखकर एक जगह काम लगवाया,
जहां उस *अकेली माँ* को *पत्थर तोड़ने* का काम मिला..।।
ऐसे करते-करते कुछ वर्ष बीते *”वो पत्थर तोड़ती”*;
और मिली हुई कमाईं से बच्चों का पालन-पोषण करती रही,
उसने एक दिन वही अपना दम तोड़ दिया,
और अपने मालिक के लिए चिट्ठी छोड़ी जिसमें लिखा था ।।
*साहब आपने इस बेसहारा को सहारा दिया*,
परंतु में *अकेली मां* उनके पालन-पोषण में कामयाब नहीं हो सकी,
इसलिए *ज़हर खाने* की विवश उत्पन्न हो गई,
क्या करूं *”मैं मजदूर , इतनी मजबूर* हूं..!!
आप इनको हर दम सही रास्ता दिखाएं ,
और इनको पढ़ा-लिखाकर आप जैसे अच्छा इंसान बनाएं ।।
*अकेली मां पार्वती*
*प्रतियोगिता का दुसरा चरण*
-सुरभि लड्डा