एक काल्पनिक पत्र महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जी के नाम

प्रिय चंद्रशेखर आज़ाद जी,
(पंडित चंद्रशेखर तिवारी जी)
प्रणाम 🙏🏼

आज आपको यह पत्र लिखते हुए मन बहुत भावुक हो रहा है। लगता है जैसे आप यहीं कहीं पास खड़े हों और अपनी वही चमकती हुई आँखों से देख रहे हों। माथे पर तेज, आँखों में हिम्मत और होंठों पर वो अडिग वचन – “आज़ाद जिये हैं, और आज़ाद ही मरेंगे।”

आपके समय को सोचकर ही रूह काँप जाती है। चारों तरफ अंग्रेज़ों का अत्याचार, लोगों में डर, और ज़ुल्म के खिलाफ बोलना भी खतरे से खाली नहीं था। ऐसे समय में आप सिर्फ़ खड़े ही नहीं हुए, बल्कि पूरी ताकत के साथ लड़े। आपने अपनी पढ़ाई, अपना घर, और अपनी सारी खुशियाँ देश के नाम कर दीं।

आज हमारा भारत स्वतंत्र है। हम खुली हवा में साँस लेते हैं, अपने तिरंगे को आसमान में लहराते हैं, अपनी भाषा बोलते हैं और अपने धर्म का पालन करते हैं — यह सब आपके और आपके जैसे वीरों की कुर्बानियों का नतीजा है। आपने अपनी जवानी और अपना जीवन इस मिट्टी के नाम कर दिया।

लेकिन सच यह है कि आपका सपना अब भी अधूरा है। अब हमारे देश के सामने नए दुश्मन हैं — भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, लालच और आपसी नफरत। कई बार लगता है कि लोग आपकी कुर्बानी को भूलते जा रहे हैं। आज़ादी हमारे लिए बस एक छुट्टी बनकर रह गई है, जबकि यह तो आपके खून और बलिदान से मिली है।

आज़ाद जी, मैं आपको वादा करता हूँ कि हम आपकी सोच को जिंदा रखेंगे। हम एक ऐसा भारत बनाने की कोशिश करेंगे, जहाँ हर बच्चा पढ़-लिख सके, हर किसान अपने खेत में मुस्कुराए, और कोई भी भूखा न सोए। जहाँ हर धर्म, जाति और भाषा के लोग एक-दूसरे को अपना भाई मानें।

जब भी डर लगेगा, मैं आपकी निडर आँखों को याद करूँगा। जब भी हार मानने का मन होगा, मैं आपका वचन याद करूँगा – “आज़ाद जिये हैं, और आज़ाद ही मरेंगे।” आपने हमें सिखाया है कि देश के लिए जीना और मरना ही असली सम्मान है।

आप हमारे दिलों में हमेशा रहेंगे। हम आपको सिर्फ इतिहास की किताबों में नहीं, बल्कि अपने अच्छे कामों, अपनी ईमानदारी और अपने कर्मों में याद रखेंगे। यह वादा है कि भारत माँ का नाम हमेशा गर्व से ऊँचा करेंगे।

भारत माँ के इस सच्चे सपूत को मेरा शत-शत नमन।

आपका एक आभारी भारतीय,
जय हिंद, इंकलाब जिंदाबाद 🇮🇳🙏🏼

(ऋषभ तिवारी) (लब्ज़ के दो शब्द)

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