एक सैनिक का खत
मैं हूंँ इक भारत का सैनिक, बात वतन की करता हूंँ।
परिवार से दूर हूंँ रहता ,मरने से कब डरता हूंँ ।
जान गवांँ कर भी अब तक में ,रक्षा करता आया हूंँ।
बुरे इरादों पर दुश्मन के, बनकर रहता साया हूंँ।।
अग्नि वीर का नाम दिया है ,भारत के रखवालो ने।
मन मेरा झकझोर दिया है ,ऐसे कहीं सवालों ने।।
चार वर्ष की समयावधि में ,यदि शहादत में पाऊं ।
कैसे देशभक्त बन जाऊं ,गीत भारती के गांँऊ ।।
एक मातु की गोद मिले तो, दूजी को खोना होगा।
सदा अनाथो जैसा जीवन, बच्चों को जीना होगा ।।
सरहद पर दिन-रात जाग कर, प्रहरी तो बन जाऊंँगा। रोजगार भी दूजा कैसे, मैं हासिल कर पाऊंँगा ।।
सैना शिक्षा और स्वास्थ्य हो, शासन की जिम्मेदारी ।
अच्छा शासन वही मान लो ,बने नहीं खुद व्यापारी।।
कोई शहादत मार सकी कब, अमर सहर्ष मै कहलाया। निजीकरण को देख दुखी हूंँ ,क्यों इससे नहीं बच पाया।।
सब कुछ देख रहा हूंँ बेबस, दूर किनारा दिखता है।
ऐसी वोटर लिस्ट हो खारिज ,वोट जहांँ पर बिकता है।।
सरकारी संरक्षण देती, वह सरकार सदा चुनना।
नींव देश की सुदृढ़ कर दे ,पक्का बंध सदा बुनना।।
रामकुमारी मेरठ ✍️