स्वतंत्रता के स्वर 🇮🇳
(माँ भारती को पत्र)
प्रिय माँ भारती,
तेरे आँचल की मिट्टी की महक आज भी मेरे रोम-रोम में बसती है, वैसे ही, जैसी उस पावन सुबह में थी, जब मेरे पुरखों ने तेरे आँगन में आज़ादी के दीप अपने रक्त से जलाए थे। तेरे खेतों में पसीने की बूँदें, तेरे आसमान में बलिदान के गीत और तेरे कण-कण में गूँजते जयघोष —आज भी मेरे दिल में बिजली-सा जोश भरते हैं।
माँ, मैंने सुना है —तेरी संतानों ने नमक के एक कण से भी क्रांति की लकीर खींच दी थी, वहीं तिरंगे की लाज के लिए हँसते-हँसते फाँसी का फंदा गले में डाल लिया था। किसी ने सत्य अहिंसा से तेरे आँचल को ढाल बनाया, तो किसी ने बंदूक की नली में तेरे सपनों का बीज बोया। तेरे लिए हर घाव, हर बूँद खून, तेरे माथे पर अमर तिलक बनकर चमकता रहा।
आज मैं, तेरी इसी मिट्टी का एक साधारण बेटा, तेरे चरणों में यह प्रण लेता हूँ— कि तेरी आज़ादी की लौ मेरी साँसों में जलती रहेगी। ना लोभ मुझे डिगा सकेगा, ना भय मुझे रोक पाएगा। मेरे हर कर्म का पहला धर्म, तेरी सेवा ही होगा।
माँ, मुझे पता है — तेरे खेतों में मेहनत करने वालों की थाली अब भी ख़ाली है, तेरे शहरों में सपनों के महल, कभी-कभी झुग्गियों में दम तोड़ देते हैं। पर यकीन कर, माँ —तेरे बेटे-बेटियाँ अब थमेंगे नहीं, हम नयी सोच, नयी तकनीक और नये साहस के साथ, तेरे हर कोने में उम्मीद की रोशनी भरेंगे।
वो दिन आएगा, जब तेरा गगन विज्ञान की गूँज से थर्राएगा, तेरी धरती हरे वस्त्र पहनकर मुस्कुराएगी और तेरे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरजाघर — सब एक ही स्वर में गाएँगे — “हम सब तेरी संतान हैं, और तेरा सम्मान हमारी जान है।”
तेरे लिए जीना, तेरे लिए मरना और तेरे आँचल में मुस्कुराते हुए अमर हो जाना — यही मेरे जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य होगा।
तेरे चरणों में,
सुनील मौर्या
नई दिल्ली से
एक जागरूक नागरिक