वो भी बचपन के क्या दिन थे

विषय- वो भी बचपन के क्या दिन थे

वो रात जब बिजली न हो तो सबके साथ छत पर गुजारना,
हाथ के पंखे से माॅं का बच्चों को प्यार से खुद ही हवा हांकना।

वो बचपन की शरारतें जहाँ स्कूल से लौट पार्क में बस जाना,
सब बच्चों के संग गिल्ली डंडा खेल कर फिर बस मुस्कुराना।

वो छत पर तारों का गिनना नींद न आने पर समय बिताना,
भाई बहन संग माँ पापा के साथ छोटी छोटी शरारतें करते रहना।

बाहर खेलने को मना किया जाये तो टोली इक़ट्ठी कर निकल लेना,
गांव के रंगों में मिट्टी का बचपन का घरौंदा खुशियों से बुन लेना।

घर में अंदर माँ रोटी बनाये पापा का घर हिसाब जोड़ते बैठ जाना,
बाहर बच्चे अपने बचपन में बेफ्रिक होकर दोस्तों संग खेल जाना।

कभी आम के पेड़ पर आमों का तोड़ना और शरारतें करते जाना,
कभी माॅं के संग नटखट सी कहानी सुनाकर भी खुद में मुस्कुराना।

वो गांव की और साइकिल में बैठाकर यारों के संग मौज भी करना,
वहाँ जाकर आइसक्रीम तो ईमली मिले पैसों से जमकर खाना।

आज शहर की भाग दौड़ में बचपन का जैसे अब खुद भूल जाना,
अब पैसे है नाम है पर वो अंजानी शरारतों को याद कर रो जाना।

©गार्गी गुप्ता

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *