प्रतियोगिता ~ *शब्दो की अमृतवाणी* ~
*गाँव में बचपन* ~
वो गाँव का घर , वो गाँव में मिट्टी के कच्चे से गलियारे ,
मिट्टी की सौंधी सुगंध से महकते है बहुत ही प्यारे प्यारे ।
वो दिनभर की मस्ती , खेत खलिहानों की बस्ती से थक कर चूर हो जाना ,
दौड़ कर झटपट छत पर सोने चले जाना ,बड़ा ही याद आता है वो सुहाना जमाना ।
लेटकर यूँ चाँद को निहारना , बातों ही बातों में नींद का आ जाना ,
नींदों में चंदा मामा का सपना सजाना , क्यों गया वो गुजरा जमाना ?
प्राकृतिक हवा का सांसों में घुल जाना , छूकर बदन को जैसे कोई लोरी गुनगुनाना ,
कहीं नहीं मिलता अब ऐसा बिस्तर और ऐसी आबोहवा का आना जाना ।
भोर हुई जब ,आँखे खुले तब मित्रों का आवाज लगाना ,
एकत्र होकर छुक छुक रेल चली खेल खेल में गाना गाना ।
देखकर कतार मम्मी का चिल्लाना , वो गाँव का मौसम था कितना सुहाना ,
न कोई चिंता थी न कोई परवाह , था वो बचपन हर गम से बेगाना ।
अम्बुआ के नीचे , खेले है बच्चे आँखिया मीचे ,बेखौफ है श्वान भी यहाँ ,
मस्ती की कतार है ,शांति की बयार है,
खुले है सब दरवाजे गाँव की आन है जहाँ ।
दादाजी का प्यार , दादी का दुलार , मिलता है गौ माता का दूध बार बार ,
खेलकूद कर बड़े होते बच्चे सेहत में होता सबकी बहुत सुधार ।
वो गाँव की कच्ची पगडंडी , घर घर होते है मिट्टी के चौबारे ,
जहाँ बैठकर हम बतियाते एक दूजे से , सबकी बातों में चर्चे होते न्यारे ।
पीपल की ठंडी छाँव वहीं है दादाजी का मकान वहीं है ,
दादी के चूल्हें की रोटी , तो हाथों मे पड़े उसके घाव वहीं है ।
बारिश में महक जाता है , बच्चों के शोर से चहक जाता है मेरा गाँव ,
आज भी झुरमुट बनाकर जब बच्चे चलाते है बारिश के पानी में कागज़ की नाव ।
®©Parul yadav ~
प्रथम चरण ~
अल्फ़ाज़ -e- सुकून ✨✨
आबोहवा – हवा , पानी , मौसम , जलवायु
बेगाना — अनजान , पराया
बेखौफ — बिना डर के ,