कविता प्रतियोगिता : शब्दों की अमृतवाणी
शीर्षक : पैसा और ज़िंदगी
पैसा कमाना कितना है ज़रूरी,
दिव्यांग हो या बुज़ुर्ग – सबकी यही है मजबूरी।
किसी ने चुनी मेहनत, तो चुनौतियाँ राह बनीं सफलता की,
किसी ने चुना भाग्य, और किस्मत के आगे घुटने टेक दिए –
वो भीख माँगने पर मजबूर हुए।
किसी ने छल से दूसरों को लूटा,
और अपने घर महलों को भर लिया ।
किसी ने दूसरों के दम पर सपनों के किले खड़े किए,
तो किसी ने अपने सपनों को पाने की ओर कदम बढ़ाए।
कोई बस ख्याली पुलाव पकाता रहा,
तो कोई हर ठोकर से खुद को गढ़ता रहा।
खुद से बेहतर बनने की होड़ लगी,
पर अंत में क्या पाया – ये कोई न जान सका।
पैसा ज़रूरी है, ये सबने माना,
पर किसने जीवन सच में जिया?
पैसे की दौड़ में सब भागते रहे,
पर जीवन कहीं पीछे छूट गया।
किरण बाला
नई दिल्ली