प्रतियोगिता “शब्दों की अमृतवाणी ”
विषय- “गरीबी से बड़ा ईमान”
“फाइनल राउंड ”
……………………..
ताकत से नहीं मनोबल से टूटा हूँ,
तन से आज भी मजबूत हूँ,
मैं परवरिश के धागों में बँधा हूँ,
गरीब हूँ चोर नहीं मैं मेहनत,
से जीना चाहता हूं ….!!!
परवरदीगार तूने मुझे जीवन दिया,
मुझे अधूरा बनाकर पूर्ण किया,
अंगों से मत जांचों मुझे इस जन्म
में मैंने क्या क्या न सह लिया…!!!
जिंदगी के इस सफ़र ने मुझे,
तोड़ा बहुत बेईमानी के ठोकरों
में रौंदा बहुत सच्चाई के पथ पर,
चलने को दुनिया ने रोका बहुत ,
शीशझुका कर मैं अपनी,
राह बना जाता हूँ,
गरीब हूँ मैं चोर नहीं,
मैं मेहनत से जीना चाहता हूं…!!!
जज्बातों की कहाँ क़दर इन्हें,
बड़े बड़े ठेकेदारों के दर पर,
इन्हें झुकते देखा बिकते देखा
चंद सिक्कों मे इनको छलते देखा
गरीबी लाचारी खत्म करने की,
क्या? इनको जरूरत,
पासों में छलती जिनको ,
उनकी किस्मत …!!!!
इस दुनिया के ना चले कायदे,
उस दुनिया में न चले फायदे,
हिसाब होता रोज कर्मों का
बंद होते खुलते द्वार जन्मों का,
चिंतन कीजिये काज कीजिए
न चलेंगे सिक्के न काम आते
छल कपट …!!!
ईमान मेरा सस्ता नहीं,
चाहें हाथों में पड़ें छाले ,
इस जन्म जो सफल न हुए,
तो क्या अगले जन्म में होंगे,
खत्म सारे फासले,..!!!
मेरा भी सपना पूरा होगा,
खुल जायेंगे सभी रास्ते,
बड़ी गाड़ी, बड़ा घर, धन,
खत्म होंगे कष्टों के मन,
संघर्षों से डर कर नहीं,
बदल देंगे हम अपने रास्ते,
गरीब हूँ चोर नहीं मैं मेहनत
से जीना चाहता हूं ….!!!
रुचिका जैन
फाइनल राउंड
अल्फाज़ ए सुकून