प्रतियोगिया ~ *शब्दो की अमृतवाणी*
*जीवन का संघर्ष और मज़दूर*~
उम्र को मात देता सूरज का साथ देता चल पड़ा वो रोजी को ,
बच्चों का भूख से बिलखता चेहरा लिए आंखों में निकल पड़ा वो रोटी को ।
वजन ढोना मजबूरी है , मंजिल से अभी बहुत दूरी है ,
क़दम रोज़ उसका साथ देते है , रास्तों को हँसकर नाप लेते है ।
करके श्रम वो पेट पाल लेता है , अपनी मेहनत से घर संभाल लेता है ,
पत्थरों पर सोकर रात बिताता है , सूरज से पहले वो जाग जाता है ।
चिलचिलाती धूप हो या हो ठिठुरती शाम , चाहे हो भीगी बरसात ,
सब सहता है माता पिता के खातिर , याद रहती है बच्चों की उसे हर बात ।
देखकर वो औरों को , खुद को सम्बल देता है शुक्र ख़ुदा का कहता है ,
हाथ नही है जिसके वो भी जीवन ढोता है पैरों को अपने हाथ बनाकर रहता है ।
घर मे ख्वाइशें पल रही है , बच्चा भूखा सोता है , ख्याल ये सताता है ,
सारा दिन खर्च कर , जी तोड़ मेहनत कर कुछ पैसे जोड़ पाता है ।
खर्च करके सारी कमाई , दिल उसका बहुत खुश हो जाता है ,
अपनी कमाई घर में लुटाता ,पैसा जोड़कर रखना उसे कब आता है ।
रोज कमाना , रोज खाना यहीं दिनचर्या अपनाता है ,
अपना थोड़ा हिस्सा दान कर वो जीवन मे पुण्य भी कमाता है ।
बहुत मशक़्क़त के बाद भी न मिले कोई काम तो भूखा ही सो जाता है ,
मगर जीवन मे कभी कोई गैर काम करना उसे ना आता है ।
देखकर खुद को आईने में , बड़े बड़े ख्वाब पाल जाता है
सच होंगे न मेरे सारे सपने अपने मन मे सवाल ये उठाता है ।
अपनी मेहनत अपने परिश्रम से खुद को कुछ और वो पाता है ,
बनकर एक दिन बडा आदमी यहीं जीवन गीत गुनगुनाता है ।
®©Parul yadav ~
*अल्फ़ाज़ -e- सुकून*✨✨
~ फाइनल राउंड ~
ख्वाइशें — इच्छाएँ
मशक़्क़त — कड़ी मेहनत
आईना — शीशा , दर्पण ।