प्रतियोगिता ‘ शब्दों की अमृतवाणी ‘
विषय – “संघर्ष और जिम्मेदारियों से लिपटी जिंदगी”
रात की थकान संग,सुबह नई जंग होती है,
हर साँस में एक अधूरी उमंग होती है,
कंधों पर बोझ,सपनों का कहीं गुम हो जाना,
मुस्कुराकर दर्द छिपाना ही रोज़ का तराना।
हर क़दम पे ठोकर,हर मोड़ पर इम्तिहान,
फ़िर भी आशाओं के दीप बुझने नहीं देता इंसान,
थककर भी हार नहीं मानता,है उसका ग़ुमान,
संघर्ष से लिपटी ये ज़िंदगी फ़िर भी है अभिमान।
हाथों की लकीरों मे सभी किस्मत ढूंढते है,
बताओ जिनके हाथ नहीं वो कैसे तक़दीर गढ़ते है?
माना,कुछ चीज़ों पर अपना ज़ोर नहीं है,
पर,किस्मत के भरोसे रहना भी तो कोई हल नहीं है।
ये अब दुनिया का दस्तूर कैसा हो रहा?
अमीर और अमीर,ग़रीब और ग़रीब हो रहा,
इंसानियत का मोल भी अब तो नसीब हो रहा,
भरोसे का हर रिश्ता यहां अब तो गरीब हो रहा।
जिसके पास दौलत है वही सरताज बनता है,
गरीब का पसीना यहाँ बस मज़दूर कहलाता है,
जिसकी जेब भारी हो,वही सम्मान पाता है,
वही इस समाज में सबसे बड़ा इबादतगाह है।
ख़ैर,ये दौलत-मोह की बातें कब थमी हैं,
सच तो ये है कि उम्मीदों से ही ज़िंदगी जमी है
पैसा सब कुछ नहीं,ये जानना ज़रूरी है,
हौसले ही इंसान की असली संपत्ति पूरी है।
छोड़ ‘सहर’,तू अब ख़ुद से ही ख़ुद का मुजाहिदा (आत्म-लड़ाई/जद्दोजहद) कर,
कल से बेहतर बनने का तू आज अरमाँ (ख़्वाहिश) कर,
जब अपनी ही बलंदी (ऊँचाई/शिखर) छू लेगी तू,
तब सच्चे मायनों में फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता/पूर्णता) का पैमाना(आदर्श/मिसाल)बन जाएगी तू।
✍️ स्वीटी कुमारी ‘सहर’
सीरीज 1
फाइनल राउंड