चलो आज भारत की अर्थव्यवस्था दिखाता हूं,
अपने आप से आप सब को रूबरू करवाता हूं।
मैं देखता हूं दुर्दशा अपनों की भी अपने आसपास,
क्या कहूं पैसा भगवान है जिससे मैं हार जाता हूं।
अपने देश की तरक्की की धुरी मैं मजदूर भी हूं,
देखता हूं मुफलिसी अपनी पर बोल नहीं पाता हूं।
सरकारी कामकाजों में मेरे ही साथ होता अन्याय,
चौड़ी सड़क में गए खेत पर मुआवजा नहीं पाता हूं।
आराम हराम है गांधी जी का नारा हमारे लिए ही है,
मैं तो बुढ़ापे और बीमारी में भी काम करने जाता हूं।
मेरा शरीर कितना भी जर्जर हो जाए बीमारीयों से,
लेकिन कुली बनकर मैं दुनिया का बोझ उठाता हूं।
मैं अपनी पूरे जी जान से करता हूं खेतों का काम,
लेकिन फिर भी जमींदार साहब की लात खाता हूं।
धोता हूं साहब के कपड़े भी ऑफिस के काम के साथ,
फिर भी साहब द्वारा हेय की दृष्टि से देखा जाता हूं।
मैं भंगी बनकर सफाई का काम भी तो करता हूं,
लेकिन जनता के छुआ छूत का हकदार होता हूं।
सीधी सी बात इतनी है कि मैं मर भी जाऊं राव,
लेकिन अपने भारत में कभी भी सम्मान नहीं पाता हूं।