सपनों की उड़ान (बेटी कहा उड़ पाती)

सीरीज वन
प्रतियोगिता 03
जयघोष ( स्वरों का उत्सव, भावनाओं का जयघोष )
विषय – सपनों की उड़ान (बेटी कहा उड़ पाती )

बेटियां सपनों की उड़ान भर कहा पाती हैं
बेटी होने की सजा वो पूरी उम्र ही पाती हैं
भेदभाव की चक्की में हमेशा पिसती रहती
बेटी भी एक इंसान ये दुनिया भूल जाती हैं

सपने को छोड़ छोटे हाथ घरकाम में लग जाते
कई सपने गर्भ के अंदर ही खत्म कर दिए जाते
सपने देखने का अधिकार कहा हैं लड़कियों को
उनके बचपन भी उनसे जबरन छीन लिए जाते

माता,पिता ही होते हौंसला बेटियों के सपनो का
उन हौसलों को भी समाज की सोच निगल जाती
नज़र बारह की उम्र में भी दरिंदो की वछ पे रहती
फिर कैसे शिवोम बेटी सपनो की उड़ान भर पाती

इन सभी से बच जो कोई बेटी अगर उड़ना चाहती
फिर मोमिता, निर्भया सी घटनाएं दिल हैं दहलाती
सपने भी ख़ौफ़ खा जाते अब देख के ऐसी दरिंदगी
आलम अब ऐसा हैं बेटियां सपने देखना भूल जाती

सब को मात देकर अपने विवेक से जो आगे बढ़ती
उनको घूंघट,ससुराल,दहेज की पीड़ा सहनी पड़ती
सपनों को हासिल कर भी उन्हें छोड़ देती हैं बेटियां
पारिवारिक जिम्मेदारी में ही वो उलझती रह जाती

सपनों की जगह चौका, बेलन घर के बर्तन ले लेते
बेटी के घर के आंगन भी उसे देख कर हैं बिलखते
ख़ामोश होकर बेटियां हर पीड़ा हंस के सह जाती
फिर भी कुछ पुरुष उनको पैरों की धूल हैं समझते

जनकवि निंदा करता लेखनी भी आज कराह रही
देख बेटियों के टूटते सपने कलम मेरी डगमगा रही
मेरा प्रणाम हैं हर बेटी को आप सभी हैं पूज्यनीय
जो इतना कुछ सह कर हमे गर्भ में धारण कर रही

जिस दिन बेटियां भर लेगी अपने सपनों की उड़ान
उस दिन पूरा हो जाएगा हर माता पिता का अरमान
बेटी यहां जब मौका नहीं जिम्मेदारी समझी जाएगी
बेटियां तब आसमां छुएगी बनाएगी अपनी पहचान

✍️ ✍️ शिवोम उपाध्याय
इनिशियल राउंड
🌟 🌟 अल्फ़ाज़ ए सुकून 🌟 🌟

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