राष्ट्र प्रथम
मेरे लहू की हर बूंद में बसा है तिरंगे का मान,
साँस-साँस कहती है – भारत मेरा अभिमान।
धरती से गगन तक पर्वत से सागर तक,
हर कोना गाता है राष्ट्र प्रथम है, सब कुछ उसके बाद।
जब भी देखता हूँ लाल किले पर लहराता तिरंगा,
रग-रग में दौड़ जाती है एक अनोखी ज्वाला।
ये मिट्टी सिर्फ मिट्टी नहीं, ये मेरी माँ है,
इसके खातिर हंसकर कुर्बान होना मेरा धर्म है।
सैनिक की वर्दी पर धूल लगे तो वह सोना बन जाती है,
उसके कदमों की आहट दुश्मनों के दिल को हिला जाती है।
सीमा पर खड़ा हर जवान कहता है निर्भीक,
राष्ट्र का सम्मान है सबसे अधिक।
यह देश वही है जिसने हमें जीना सिखाया,
भाईचारे, बलिदान और प्रेम का पाठ पढ़ाया।
गाँधी की अहिंसा, भगत की क्रांति,
सबने एक ही आवाज लगाई – *राष्ट्र है सबसे प्रथम*।
हमारी रगों में गूंजे जन गण मन,
हर दिल कहे – वन्दे मातरम्।
राष्ट्र है तो हम हैं, यह सत्य अमर है,
इसके लिए हर बलिदान हमें स्वीकार है।
मेरा वजूद, मेरी पहचान सिर्फ भारत है,
मेरे सपनों का हर आसमान भारत है।
चाहे जीवन का अंतिम क्षण भी क्यों न हो,
मेरे होंठों से निकलेगा बस यही –
राष्ट्र प्रथम है, राष्ट्र ही अंतिम है!
— ऋषभ तिवारी (लब्ज़ के दो शब्द)