सीरीज वन
प्रतियोगिता 03
जयघोष ( स्वरों का उत्सव, भावनाओं का जयघोष )
विषय – क्रांति की गूंज
आज के दौर में बस मशीनों में नहीं उलझना हैं
अपने पूर्व क्रांतिकारियों को याद हमे रखना हैं
उनकी जयंती पे फूल माला चढ़ा के क्या होगा
उनके जैसा बनकर देश को आगे हमे बढ़ाना हैं
हिम्मत या हौंसला जो कभी कमजोर पड़ जाएं
देशहित में अगर कभी स्वार्थ तुम्हारे आगे आए
याद रहे भगत का बलिदान आज़ाद का जज़्बा
फिर लहू उबाल के साथ क्रांति का बिगुल बजाएं
दुश्मन जब भी आतंकी चुनौती हमारे सामने लाए
क्रांति की गूंज ऐसी हो उसके कदम पीछे हो जाएं
देखे जब वो एकता और आक्रोष हमारी आंखों में
उनकी बंदूक की गोली खुद के माथे पर चल जाएं
अहिंसा के हम पुजारी हैं पहल हम खुद नहीं करते
देखे कोई हमारे देश की ओर उसे नेस्तनाबूत करते
क्रांति का नाम सुन यहां बुजुर्ग भी आगे को हैं आते
बलिदान के लिए हम भारतीय कभी सोचा नहीं करतें
इतिहास पुराना हो गया तो फिर से हम नया लिख देंगे
क्रांति लायेंगे मिलकर आतंक को जड़ से खत्म कर देंगे
आवाज़ हर बच्चे की आएगी सरफरोशी हमारे दिल में हैं
हमारे खून में हैं भारत दुश्मनों को हम अब दफ़न कर देंगे
क्रांति की गूंज हम लेखकों के कलम,शब्दों से जब आएगी
दुनिया की सारी बुरी ताकत मुकाबला ना हमसे कर पाएगी
लिखेंगे जब कलम के सिपाही फिर आलम कुछ ऐसा होगा
शब्द तो बरसाएंगे बम और कलम हमारी गोलियां चलाएंगी
जनकवि ही क्रांति का जनसैलाब लेकर आएगा “शिवोम”
फिर करेगा जयघोष पाएगा आप सभी से दिल से सम्मान
स्वरों के उत्सव में जब शब्दों के क्रांति की गूंज दहाड़ मारेगी
फिर अल्फाजों की माला पहनूंगा और कहलाऊंगा प्रतिभावान
फाइनल राउंड
✍️ ✍️ शिवोम उपाध्याय
🌟🌟 अल्फ़ाज़ ए सुकून 🌟 🌟