विषय : प्रकृति हमसे नाराज़ है ।
शब्दों की माला : एकल राउंड
जिसे कहा माँ उसकी ये दुर्दशा – कि,
अपनी खुद कहानी लिखी व्यथा की,
प्रकृति की पूजन का संदेश तो
“श्री कृष्ण “ ने भी बतलाया,
पूजा था गोवर्धन को—
मान उसने भी पाया,
फिर हम मनुष्य क्या प्रभु से भी ऊपर हो गए?
अपने अहंकार में इतने खो गए ।
बनाए बड़े -बड़े रिजॉर्ट ,
और धार्मिक स्थलो को पर्यटन स्थल बना डाला,
सुरंगो का लुफ्त हमने ही उठाया ।
काटे पेड और खोखला कर दिये जंगल ,
नादियों के रास्ते में घर हमने बनाये ।
अतिक्रमण रोकना अब जरूरी है,
वरना विनाश से अब ना दूरी है।
दिखाया जब नदियो ने रूद्र
रुप तो —-
गाव के गांव तबाह हुए,
जीव -जंतु मनुष्य सभी प्राणी
आहत हुए ।
है समय अभी भी प्रकृति को पहचानो,
लो संकल्प बचाने का और अपना ऋण चुकाओ ।
धूप , हवा, रोशनी पानी सब तो संसाधन प्रकृति ने दिये,
फिर हम क्यू स्वार्थी भक्षक हुए।
जानो अपना मूल और प्रकृति को महत्व दो
किया जो हमने अपराध —
है देवी माँ क्षमा करो !
किरण बाला
नई दिल्ली