Prakrati humse naraz hai

विषय : प्रकृति हमसे नाराज़ है ।
शब्दों की माला : एकल राउंड

जिसे कहा माँ उसकी ये दुर्दशा – कि,
अपनी खुद कहानी लिखी व्यथा की,
प्रकृति की पूजन का संदेश तो
“श्री कृष्ण “ ने भी बतलाया,
पूजा था गोवर्धन को—
मान उसने भी पाया,

फिर हम मनुष्य क्या प्रभु से भी ऊपर हो गए?
अपने अहंकार में इतने खो गए ।

बनाए बड़े -बड़े रिजॉर्ट ,
और धार्मिक स्थलो को पर्यटन स्थल बना डाला,
सुरंगो का लुफ्त हमने ही उठाया ।

काटे पेड और खोखला कर दिये जंगल ,
नादियों के रास्ते में घर हमने बनाये ।

अतिक्रमण रोकना अब जरूरी है,
वरना विनाश से अब ना दूरी है।

दिखाया जब नदियो ने रूद्र
रुप तो —-
गाव के गांव तबाह हुए,
जीव -जंतु मनुष्य सभी प्राणी
आहत हुए ।

है समय अभी भी प्रकृति को पहचानो,
लो संकल्प बचाने का और अपना ऋण चुकाओ ।

धूप , हवा, रोशनी पानी सब तो संसाधन प्रकृति ने दिये,
फिर हम क्यू स्वार्थी भक्षक हुए।

जानो अपना मूल और प्रकृति को महत्व दो
किया जो हमने अपराध —
है देवी माँ क्षमा करो !

किरण बाला
नई दिल्ली

Updated: September 8, 2025 — 7:31 am

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