समय की परछाइयाँ

सीरीज 1 प्रतियोगिता 4
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नाम : शब्दों की माला
प्रतियोगिता टॉपिक : समय की परछाइयाँ
राउंड : एकल
रचयिता : सुनील मौर्या

समय की परछाइयाँ
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कितना भी तुम कहीं भाग लो,
ये परछाइयाँ साथ चलती हैं।
वक्त की रेत पर लिखी लकीरें,
इंसान को जीना सिखा देती हैं।

कभी धूप बनकर चुभती है,
कभी चाँदनी-सी सहलाती है।
समय अपनी परछाइयों में,
हर एहसास को छुपा लेता है।

बचपन की खिलखिलाहट,
यौवन की अनगिनत बेचैनियाँ—
सपनों के जैसी, ऊँचीं उड़ानें,
और कुछ अधूरी सी कहानियाँ।

कभी ये हाथ थाम लेती है,
तो, कभी दूर धकेल देती है।
समय की ये परछाइयाँ,
हमें हर रोज़ परख लेती हैं।

हँसी के आँचल में छिपे आँसू,
दर्द में बसी उम्मीद की खुशबू,
हर पल जैसे इक नया आईना है,
जिसमें जीवन का सच दिखता है।

समय की परछाइयों से कोई नहीं बच सका,
ज़िंदगी के आख़िरी मुकाम तक, सब याद रहा।

सुनील मौर्या

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