डिजिटल भारत : पक्ष और विपक्ष

जमाना बदलता निरंतर और निरंतर बदलता ये भारत
कहीं स्वच्छता ही सेवा तो कहीं बेटी पढ़ाओ की इमारत
मजबूत इरादों की बुनियाद लाये हर चेहरे पे मुस्कुराहट
आओ चलो मिलकर बनायें हम भारत को डिजिटल भारत

सेवाओं के प्रचार से तरक्की की एक नई राह मिली
नये कल के निर्माण की खातिर प्रगति की नई लहर बनी
अंधेरों में रह रह कर कईं तकनीकों की नई खोज हुई
बिजली केवल बिजली न रही खुशियों की नई उम्मीद बनी

होड़ के इस नव जीवन में भारत भी बढ़ता चलता है
चुनौतियों के दौर में विजयी गाथा रचता चलता है
संचार के नव दीप भी जले और हो जाता प्रकाश कहीं
नव भारत निर्माण में अब हम भी न रहे पीछे कहीं

सपने अब सपने न रहे सपनों की अब कोई बात ना रही
अपनों का”आधार” रहे तो फिक्र की अब कोई बात ना रही
थम जाती जिंदगियां कहीं तो कहीं बन जाती जिंदगियां नई
“डिजिटल” दुनिया के सहारे अब मिलती हर खुशियां नई

डिजिटल युग की बात निराली कभी कर देती ये जेबें खाली
बैठे बैठे करते वो बात दो मीठे बोल से बिगड़ती फिर बात
खेल खेल की सौदेबाजी कब बन जाये फिर धोखेबाजी
जाल ये अनोखा बिछता हुआ हर ग्राहक फिर परेशान हुआ

खाते खाली होते जाते फिर किस्मत अपनी कोसते जाते
बरती होती गर सावधानी पहले गैरों के हाथों फिर लुट ना पाते
मोह माया के इस खेल में बंधू बात सदा तुम याद ये रखना
लालच के मूंह तुम कभी ना लगना आर.बी.आई का यही है कहना।

Updated: September 12, 2025 — 3:32 pm

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