आग की तरह जलते सपने*

आग की तरह जलते सपने

सपने…
जिन्हें हमने अनगिनत रातों में सजाया,
जिन पर हमने अपनी उम्मीदों का आंच दिया।
वो सपने अब आग की तरह जलते हैं,
हवा से नहीं, अपने इरादों की ताक़त से।

हर जख्म, हर ठोकर ने उन्हें और भी प्रज्वलित किया,
हर असफलता ने उन्हें और भी बुलंद बनाया।
अब वे सिर्फ ख्वाब नहीं,
बल्कि मेरी पहचान बन चुके हैं।

जो लोग कहते थे —
तू नहीं कर सकता,
वो कल का बेजान शब्द बन चुका है।

अब हर कदम पर आग की तरह जलते सपने मेरे साथ हैं,
हर साँस में ज्वाला की तरह तड़पती उम्मीदें हैं।
तूफ़ानों को चीरकर निकलना है,
दुनिया की दीवारों को ध्वस्त करना है।

क्योंकि यही आग है,
जो मुझे कमजोर नहीं बनाती,
बल्कि हर अँधेरे को चुनौती देती है।

मेरे सपने जलते हैं आग की तरह —
न बुझने वाले,
न थमने वाले,
बल्कि हर पल गूंजते हुए।

उनकी रोशनी में मैं चलूँगा,
उनके ताप से मैं मजबूत बनूँगा।

क्योंकि हर वीर की कहानी में होता है एक जुनून,
और हर जुनून की शुरुआत होती है…
आग की तरह जलते सपने।

— ऋषभ तिवारी (लब्ज़ के दो शब्द)

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