डिजिटल भारत — पक्ष और विपक्ष

सीरीज 1 प्रतियोगिता 5
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नाम : हुंकार
प्रतियोगिता टॉपिक : डिजिटल भारत — पक्ष और विपक्ष
राउंड : एकल
रचयिता : सुनील मौर्या

डिजिटल भारत — पक्ष और विपक्ष
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कभी खपरैल के नीचे बैठ, मैं मस्ती में, चाय की चुस्की लेता था,
अब मोबाइल की स्क्रीन पर, किसी कविता को अंजाम देता हूँ।

शिक्षा के गलियारों से निकला, अनुभव रिटेल का, पहुँचा परदेस तक,
आज डिजिटल मंच पर गढ़ता हूँ, शब्दों के सुर-ताल, प्रगाढ़ तक।

गाँव की गलियों से लेकर, दिल्ली के इस कोलाहल तक,
नेटवर्क के धागों ने बाँधा, जैसे आकाश को धरती तक।

UPI की झंकार से, जब रोज़मर्रा का बोझ हल्का हुआ,
एक साधारण जीवन भी कहीं, आसान सा झलक उठा।

बेटी की हँसी, जब वीडियो कॉल पर दिखाई देती है,
तो लगता है जैसे, तकनीक उसे मेरे करीब ले आती है।

इमोजी में छुपी भावनाएँ, किसी शख़्स के दिल तक पहुँच जाती हैं,
कभी ख़ास दिन को याद दिलाने, कभी शुभकामना बन जाती हैं।

उत्सव भी, अब ऑनलाइन पोस्ट से दिखाने का, नया चलन है,
और मोबाइल से बिल चुकाना, बिना लाइन में लगे, सरलपन है।

पर वहीं अनपढ़ माँ की आँखें, टकटकी लगाए रह जातीं,
जब मशीन से पासबुक, पल भर में आँकड़ों से भर जातीं।

प्रकृति के पास बैठकर, चिड़ियों की चहचहाट सुनता था,
अब नोटिफिकेशन की खनक में ही, खुशियाँ ढूंढता हूँ।

सुरक्षा के प्रश्न, निजता का डर — काले बादल सा घेरता है,
जब हर क्लिक में पहचान का एक टुकड़ा कहीं रिसता है।

हर सुविधा के पीछे छिपा, डेटा का एक विशाल समंदर,
जहाँ सतर्कता ही नाव बने, वरना डूबेंगे सब उसके अंदर।

फिर भी मैं मानता हूँ — इस युग का ये जरूरी कदम है,
पर इसकी सीमाओं को समझना ही, सच्चा संकल्प है।

डिजिटल भारत तभी होगा साकार, जब सबका होगा साथ,
साक्षरता, सुरक्षा और समानता से मिलेगी हमें इसकी सौगात।

सुनील मौर्या

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