सीरीज -1
प्रतियोगिता-5 ‘हुँकार’
विषय- आग की तरह जलते सपने
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नन्हीं आँखों मे जब भी कोई,स्वप्न पलने लगते है
डगमग-डगमग चलने वाले,पांव संभलने लगते है
जब छोटे-छोटे पंखो से ये,उड़ान ऊँची भरती है
विषमताओं मे भी जब,गिरने से नही डरती है
जब साहस की दीवारें इसकी,शिखर चूमने लगती है
स्वयं सफ़लता मानो जैसे, कदम चूमने लगती है
जब छोड़ श्रृंगार के साधन को, साहस को लक्ष्य बनाती है
सुख -सुविधाएं त्याग जब,संघर्षो को भक्ष्य बनाती है
तब देख सफ़लता चिड़ियों की, क्यों गिद्ध जलने लगते है
गैरो की बाते क्या करना,कुछ अपने ही जलने लगते है
नन्हीं आँखों मे जब भी कोई,स्वप्न पलने लगते है
डगमग-डगमग चलने वाले,पांव संभलने लगते है
पंख काटने सबसे पहले, अपने ही आगे आते है
सब पीछे रह जाते है, बस ये आतुर हो जाते है
गलती इसकी इतनी है, केवल इतना दोष रहा
प्रेम कामनाओं की पंक्ति मे, सबसे पहले देश रहा
आग की तरह जलते सपने, हवा का रुख करते है
दिन-रात स्वप्न को सोच के फिर, थोड़ा-थोड़ा मरते है
तो क्या हुआ ऐसे भी लोग, साथ अपने चलते है
फूल भी तो प्रेम से, काँटों के बीच पलते है
नन्हीं आँखों मे जब भी कोई,स्वप्न पलने लगते है
डगमग-डगमग चलने वाले,पांव संभलने लगते है
लाख चुनोतियां आने पर भी, तनिक ना घबराती है
हँसी ठिठोली मे लेकर सब, आगे बढ़ती जाती है
ज्ञात उसे सब कुछ है लेकिन, किंचित सहना पड़ता है
कभी-कभी अधिकारों से भी, वंचित रहना पड़ता है
कथा-व्यथा का समय नही, किसे बताने जाएगी
कथ्य-तथ्य की बातो को कहाँ सुनाने जाएगी
देख सफलताओ को लोग, हाँथ मलने लगते है
लाख जलने वाले एक दिन, साथ चलने लगते है
नन्हीं आँखों मे जब भी कोई,स्वप्न पलने लगते है
डगमग-डगमग चलने वाले,पांव संभलने लगते है
जागृति नागले