अनकहा एहसास

*अनकहा एहसास*

गुलाबों सा दिल में बसाया था पर मुरझा गये हो तुम,
बातों को हमेशा छुपाया पर समझ न पाये कभी तुम।

मंदिरों में साथ दूर से ही मन्नत के धागे बांधे भी थे,
एक होने के लिए दुआओं में साथ हमेशा खडे़ थे।

मन के कोने में एक झलक तुम्हारी ही बसाई जो थी,
दिल क्या दिमाग ने रब से खुशियों की अर्जी लगाई थी।

साथ होकर भी दूर रहना ही दिल को गंवारा जो था,
तेरे संग होकर भी दिल बन कहाँ पाया आवारा था।

कुछ खुशियाँ साथ होती पर साथ कहाँ रह पाती है,
जैसे तुम बिन मैं और मेरे बिन कहाँ ज़िंदगी हँसती है।

एक प्यारे फरिश्तें की तरह एक ख्वाब सजाया जो है,
दिल में बस तुम्हें ही तो छवि के रुप में बसाया भी है।

हर प्रेम को प्रेम मिले वो जरुरी कहाँ रह गया आज है,
राधा से प्रेम कृष्ण सा साथ देखने को मिलता कहाँ है।

मैने तुम्हें हर घड़ी अपने खुशी संग दुख सुख में चाहा है,
मैने ईश्वर से बस तुम्हें ही अपनी खुशी के लिए तो मांगा है।

तुम्हारी हर ईच्छा को मैने अपने सर आंखो पर रखा है,
तुम खुश रहो इसलिए मैने तुमसे बहुत कुछ छुपाया तो है।

यकीन मानो मेरा प्रेम तुम्हें कभी बांधना नहीं चाहता है,
खुले आसमां में उड़ते पंक्षी वैसे उन्मुक्त रखना चाहता है।

तुम पहले चुन लो अपनी सफलता कल के इंतजार में खडे़ है,
सब्र है तभी कहते तुम मिलो या न मिलो फिर भी संग जीते है।

गार्गी बस आज वक़्त के साथ यही कहती तुमसे बात है,
अपना एक घर बनायेंगे पर दोनों सफल होगे उसके बाद है।

©गार्गी गुप्ता

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