प्रतियोगिता:दिल से दिल तक
*जाम-ए-इश्क़*
चलिए…. इस शब-ए-विसाल को ताबीर दें,
हर अहद-ए-वफ़ा को नई तस्वीर दें।
बहुत हो चुका हिज्र का ये लम्बा सफ़र,
बस अब लम्हा-ए-दीदार की तकबीर दें।
लबों पे आज मेरा नाम-ए-इश्क़ ही रहे,
नज़र में बस तेरी जाम-ए-इश्क़ ही रहे।
ये रात, ये बात, ये वक्त की हरकते गवाह हैं,
कि धड़कनों में मेरी, पैग़ाम-ए-इश्क़ ही रहे।
इस जाम-ए-इश्क़ में जो कैफ़ियत है,
वो मेरी रूह की शुरू से मोहब्बत है।
तेरी आँखों में जब मेरा अक्स नज़र आता है,
दिल से हर ग़म अपने आप हट जाता है।
ये दिल तो है हवेली तेरे प्यार की,
तू ही है मंज़िल मेरी हर पुकार की।
तेरी मुस्कान से मेरी ज़िंदगी को सजा दे,
मेरी बाहों में आकर मुझे एक नया जहाँ दे।
ये मोहब्बत कोई शोला नहीं ये तो नूर है,
एक हसीन सा गीत है जो दिल को मंज़ूर है।
हाँ सच्चा है मेरा जज़्बा, मैं ये इकरार करती हूँ,
ज़ुबान पर लाकर तीन “हर्फ ए क़बूल” में खुदको तेरा हक़दार करती हु।
©sadia