सकारात्मक प्रेम

प्रतियोगिता – दिल से दिल तक
विषय – सकारात्मक प्रेम

प्रेम का नाम सुनते ही दिल में उमंग उठता हैं
हर पहर मुझको बस एक ही चेहरा दिखता हैं
जादुई उसकी आँखें, उसके सुर्ख होंठ हैं शिवोम
करता जब श्रृंगार तब सनम मेरा संपूर्ण लगता हैं

उसके साथ ही मैंने ज़िंदगी को भी खूब जिया हैं
उसके साथ बिताए लम्हों में मुझे सुकून मिला हैं
उसकी खूबसूरती कागज़ पर उतार नहीं सकता
कविता के हर शब्दों में उसी का अक्स दिखा हैं

दिल से दिल तक उसकी आवाज़ मुझे खूब भाती
आसमानी साड़ी में वो मुझको अप्सरा नज़र आती
लाखों की भीड़ में भी वो सबसे अलग हैं मेरे यारों
उसकी सादगी शिवोम का दिल चुरा कर ले जाती

प्रेम मुकम्मल हो अगर तो पूजने योग्य भी हो जाता
प्रेम में महबूब के अलावा कोई और नज़र ना आता
दो दिलों के मिलने का अनमोल बंधन कहलाता प्रेम
हो जाते जब दो दिल एक प्रेम रगों में बहने लग जाता

देखता हूं जब मैं उसको तब मेरा दिल जोर से धड़कता
इस बेचैनी , मदहोशी को मैं अपने शब्दों में हूं पिरोता
पतझड़ में भी अब पेड़ो पर पत्ते खिल जाया करते यारों
जो कभी महबूब मेरे हाथों को अपने हाथों से पकड़ता

“प्रेम हि हृदयस्य भाषा, प्रेम्णा हृदयं बध्यते ” सत्यता हैं
प्रेम की भाषा सच्चा हृदय रखने वाला ही समझता हैं
प्रेम को अपने अमर रखा हैं मैंने दिल के साथ शब्दों में
प्रेम की ही ताकत हैं जो जमाना मुझे जनकवि कहता हैं

✍️ ✍️ शिवोम उपाध्याय
🌟 🌟 अल्फ़ाज़ ए सुकून 🌟 🌟

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