प्रतियोगिता-“दिल से दिल तक ”
***शिकायत***
तुम मेरे सामने यूं न आया करो।
धड़कनो को मेरी न बढ़ाया करो।
छुपके मिलना मिलाना तो ठीक है पर,
यूं सरेआम मिलने न आया करो।
सबके सामने तुम यूं न देखा करो।
लोग बाते करेंगे ये सोचा करो।
लाज़ आती है मुझको ये समझो जरा,
बीच राह मे तुम यूं न रोका करो।
घर के बाहर न रोज आया जाया करो।
देखकर मुझको न मुश्कुराया करो।
मां को एक रोज शक मुझपे हो जाएगा,
बार -बार फ़ोन न लगाया करो।
राज़ दिल के किसीको न बताया करो।
प्रेम कितना है मुझसे न जताया करो।
इशारे तुम्हारे मै समझ जाती हूं,
नाम ले लेके मेरा न बुलाया करो।
सुन करके मेरी बाते न भुला देना तुम।
दिल पर न लेना न सज़ा देना तुम।
उत्तर का तुम्हारे मै प्रतीक्षा करूँगी,
कब आना है मिलने बता देना तुम।
जागृति नागले ✍️