*शाह की धड़कन*
देखता हूँ रोज़ उन्हें, उन्हें भी खबर है,
मेरी मोहब्बत से कौन अब बेखबर है
दिल हार बैठा मैं, बस एक ही बार में,
क़ुबूल है , मैं डूबा हूँ उसके प्यार में।
आँखें उनकी समंदर, अदाएं हैं मोती,
रूप से अनोखी, गुणों में है ख़ूबसूरती।
वो महज़ लड़की नहीं, मेरी पहचान है,
*मेरे दिल की धड़कन, और मेरी जान है।*
रूठना-मनाना हमारा रोज़ का सिलसिला,
गुफ़्तगू में भी है मिठास का काफ़िला।
ज़ुल्फ़ों की छाँव कोई छोटा इनाम नहीं,
वो सुकून हैं, जो किसी और के पास नहीं।
प्यार जिस्मानी नहीं, पर मुकम्मल है,
ठंडी रातों में जैसे वो गरम कंबल है।
वो ज़मीं है मेरी, मैं उसका फ़लक हूँ,
उससे मिलकर ही मैं सबसे अलग हूँ।
चाँद-तारों से बढ़कर हैं हमारी बातें,
आज भी वही चमक, कई मुलाक़ातें।
दिल से पुकारूँ तो सामने वो आ जाती,
राज़ दिल के अपने वो खूब बताती ।
साथ होना नहीं, साथ निभाना ज़रूरी है,
दिल से दिल तक तनिक नहीं दूरी है।
*शाह की धड़कन* है वो, मान लो सब,
आज जो हूँ मैं, वो ही है वजह सब।
_प्रशांत कुमार शाह
पटना बिहार