देखो उठा है आज , मयंक अंगड़ाइयां लेते हुए फिर,
तुम्हे इल्म हो , हर रात निशा उससे मिलने आती है।
उसके महबूब के आने की घड़ियां बहुत नजदीक हैं,
लालिमा युक्त आदित्य की , प्यारी किरणें बताती हैं।
उसके आगमन पर उसके पायलों की झंकार कुछ यूं,
जैसे किसी मधुबन में कोई सुंदरी मधुर गीत गाती है।
यारों जब वो लहराती है, अपनी साड़ी का आंचल तो,
सच कहूं मेरे इस दिल की धड़कन बहुत बढ़ जाती है।
चांद की चांदनी में उसका खिला हुआ सांवला बदन,
जैसे कि कोई अप्सरा स्वर्ग से धरती में उतर आती है।
उसके गेसू जब मेरे चेहरे को , हौले से स्पर्श करते हैं,
तब उसकी जुल्फ़ें भी क़िमाम भी खुशबू बिखराती हैं।
उसके सुर्ख गालों का ज़िक्र , मैं जब भी करूं तो यार,
मेरी इस क़लम की स्याही , खुद भी सुर्ख हो जाती है।
उसके काजल भरे हुए , कजरारे नयनों की मार ऐसी,
कि जैसे कोई जोगन , मुझे इश्क़ का जोग लगाती है।
क्या कहूं मैं जब भी देखता हूं उसके माथे की बिंदिया,
मुझ सादगी पसंद को , तो जैसे जन्नत नजर आती है।
उसके गुलाबी अधरों पर जब अपने अधरों को रखूं मैं,
मदहोशी ऐसी वो मुझमें ही आकर घुल मिल जाती है।
उसके सांवले बदन की सम्मोहित करने वाली खुशबू,
मेरे इस दिल के अरमानों को हमेशा बेसब्र बनाती है।
कुछ इस कदर मिलते हैं , हम दोनो एक दूजे में *राव*,
ये हमारी रूह हमेशा साथ रहने का वादा कर जाती है।