प्रतियोगिया *दिल से दिल तक*~
टॉपिक : *मेरी अनमोल मोहब्बत*~
नाम लूं उसका तो जन्नत नज़र आती है ,
उसकी खुशुबू जैसे हवाओं में बिखर जाती है ,
नहीं देखा था मैंने उस खुदा को कभी ,
मगर मोहब्बत उसकी मुझे सज़दा सिखाती है ।
यूँ रोज रोज मिलने की मन्नत करता था वो ,
काज़ल लगाने की जिद पर अड़ता था वो ,
न लगाऊं तो रूठ जाता , और जो लगाऊं तो ,
इन कजरारी आँखों में डूब जाने से डरता था वो ।
वो जमाने से खौफ़जदा रहता , डर कर कहता ,
मुझे खुद की चिंता नहीं ख़्याल तुम्हारा आता ,
ज़ालिम है ये दुनिया यहाँ इश्क़ को जुर्म कहते ,
जब दिखे दो पंछी प्यार के सैयाद बनकर रहते ।
तुम न आया करो यूँ खुलेआम मिलने ,
इस मोहब्बत को लेकर होंठ होंगे तुम्हें सिलने ,
तुम्हें खोने से बहुत डरता हूँ , खुद को मिटा दु ,
मगर तुम्हें जान से ज्यादा प्यार करता हूँ ।
फिर मोहब्बत का रंग धीरे धीरे चढ़ने लगा ,
प्यार में मिलन आहिस्ता से और बढ़ने लगा ,
रब की रजामंदी से खुद को बांधा बंधन में हमनें ,
ये गठबंधन अब दुनिया के सामने सजने लगा ।
दिन और रात महबूब की बाहों में गुजरने लगा ,
सुबह सुबह मेरा प्यार रोज नया सा संवरने लगा ,
कटे दिन मानो वक्त का पहिया तेज चलने लगा ,
रात सुहानी ,चाँद भी नज़ारा देख गुजरने लगा ।
जिसे चाहा वो ही मिला ऊपरवाले से क्या गिला ,
मोहब्बत में एक सच्चा , पवित्र मोती मुझे मिला ,
सहेजकर रखूंगी मेरी अनमोल मोहब्बत को ,
तक़दीर की ख़ातिर खुदा ने दिया खूबसूरत सिला ।
®©Parul yadav ~