प्रतियोगिता : “दिल से दिल तक”
विषय : “वो महकते हुए से ख़त”
वो महकते हुए से ख़त तुम्हारे जब जब आते थे घर हमारे,
दिल की धड़कन बढ़ जाती थी देख उन्हें मेरी ख़ुशी के मारे।
जब आता डाकिया लेके ख़त बेताबी सी बढ़ जाती थी दिल के द्वारे,
जैसे कि बंद लिफ़ाफे से झाॅंक रहे हों लिखे हुए सब लफ़्ज़ तुम्हारे।
बहुत दूर से आया करते थे उन दिनों प्यार के रंग में भीगे ख़त ये सारे,
ना मोबाइल हुआ करता था और चारों तरफ़ थे हज़ारों नज़रों के पहरे।
निगाह टिकाए दरवाज़े पर इंतज़ार में अक्सर रहते थे नैन हमारे,
दिन कुछ ज़्यादा लंबे लगते थे रातों को अक्सर ख़्वाब तुम्हारे।
जब जब तुम छुट्टी आते थे तो मिलने के बहाने गढ़ते थे न्यारे न्यारे,
छुपते छुपाते मुझसे ही मुझे देखने मेरे कॉलेज के बाहर थे पधारे।
वो लेटर बॉक्स आज भी उसी जगह है क़ायम वर्ष बीत गए कितने सारे,
जिसमें पोस्ट किए थे मैंने तुम्हारे ख़तों के जवाब वो प्यारे प्यारे।
सगाई के बाद के वो तीन साल इन्हीं ख़तों के जरिए थे हमने गुज़ारे,
प्यार सच में दीवाना होता है कट जाते हैं सारे दिन और रात इसके सहारे।
स्वरचित ✍️
ममता शर्मा।
28.9.25