कविता प्रतियोगिता: दिल से दिल तक
सीरीज: १
शीर्षक : “मेरे हमदम मेरे मीत ”
अजनबी बनकर मिले थे दोनों
आज बन बैठे हैं हमदम और मीत
कुछ बातें कहनी थी आपसे
जो कभी न बयां हो पाई।
याद है जब पहली बार हमारी नज़रे टकराई थी
फ़िर मेरी आँखें थोड़ी सी मुस्कुराई और कैसे डबडबाई थी
फ़िर धीरे धीरे बात हमारी सगाई ओर फ़िर शादी तक आई थी।
वो रात सबसे अनमोल बनी ,जब शहनाई की गूंज के बीच , वरमाला के समय आप राजकुमार बनकर
मेरे सामने आए थे ,
और में आपके समक्ष आपकी दुल्हन बनकर शर्माते हुए
धीरे धीरे आई थी।
सात फेरों का सफर तय किया
मांग में सजी थी सिंदूर ।
ईश्वर को साक्षी और परिवारजनों के आशीर्वाद से
बने थे हम मीत और बंधे थे इस प्यारे दाम्पत्य बंधन में ।
उस एक पल ने मेरी दुनिया में नवीन इतिहास रचाया था
स्नेह , विश्वास की अनूठी डोर थामकर हमने
इस सफ़र को प्रारंभ किया था ।
सदा साथ रहना मेरे हमदम ,मेरे मीत
आपसे ही मेरे जीवन में है मधुर संगीत ।
दाम्पत्य जीवन को मिलकर निभाएंगे
चाहे राहें हो कितनी भी मुश्किल
साथ हरदम पार कर जाएंगे ।
स्वाति सोनी ✍️
स्वाति की कलम से ✍️