नई पीढ़ी और बदलते संस्कार

सीरीज 1 प्रतियोगिता 8
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प्रतियोगिता : आह्वान
प्रतियोगिता टॉपिक : नई पीढ़ी और बदलते संस्कार
राउंड : एकल
रचयिता : सुनील मौर्या

नई पीढ़ी और बदलते संस्कार
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नए समय की धड़कनें, नई सोच के हैं गीत,
तकनीक की राह पर चलकर, बदली है रीत।

कभी घरों में गूँजता था, मिलन का त्योहार,
अब स्क्रीन के पीछे सिमटा है सबका संवाद।

संस्कारों की छाया में, बीता था हमारा बचपन,
अब मोबाइल की रोशनी में, मिटता है अपनापन।

बड़ों के चरणों में झुकना, ऐसे होता था मान,
अब “हाय” और “हैलो” से, होता है सम्मान।

साझा थाली में खाते थे, बढ़ता था रिश्तों का स्वाद,
आज “ऑर्डर ऑनलाइन” से हैं, मंगवाते पकवान।

कभी आशीर्वाद से मिलती थी, हमें जीवन की राह,
अब “गूगल सर्च” से, पूछी जाती है हर एक चाह।

बुजुर्गों की कहानियाँ होती थीं, जीवन का पाठ,
अब “शॉर्ट्स” और “रील्स” से है, बीतती रात।

नई पीढ़ी तेज है, अपने पंखों से उड़ान तो भरें,
पर रिश्तों की मिठास कहीं, फीकी सी है पड़े।

जरूरी तो है समय के संग, बदलना और चलना,
पर संस्कारों की नींव को, कभी ना हिलने देना।

जब आधुनिकता और परंपरा का होगा एक सुंदर संगम,
नई पीढ़ी के सपनों से खिलेगा देश का भविष्य अनुपम।

— सुनील मौर्या

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